इलाज न मिलने से दुनियाभर के दांत के मरीज बेहाल
सेहतराग टीम
दुनियाभर में कई हफ्तों तक चले लॉकडाउन में अस्पतालों ने दांतों की देखभाल समेत गैर-जरूरी सेवाएं बंद कर दी थीं। इससे ढ़ेरों मरीजों को तिमाही या छमाही में जरूरी सफाई, कैविटी, रुट केनाल, इंप्लांट से लेकर मसूड़ों का इलाज टालना पड़ा। डॉक्टों को भी मरीजों के ऑपरेशन जैसे काम रोकने पड़े। विशेषज्ञों का कहना है कि इलाज बहाल होने पर क्लिनिकों पर गंभीर मरीजों की तादाद बढ़ने लगी है। आलम यह है कि कई मरीजों में हफ्तों पहले आसानी से ठीक हो सकने वाली बीमारियों ने बड़ा रूप ले लिया है। मसूड़ों में संक्रमण जैसी स्थिति में तो मरीजों में ह्रदय रोग और मधुमेह का जोखिम बढ़ गया है, जिसने उन्हें कोरोना के प्रति कमजोर करने का काम किया है।
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इलाज में देरी से परेशानी बढ़ी
दंत चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि लॉकडाउन के कारण इलाज टालने वाले मरीज अब ज्यादा परेशान हैं। जनवरी में जिस मरीज की हल्की कैविटी साधारण फिलिंग से सही हो सकती थी, अब वह दांत के बड़े हिस्से को नुकसान पहुंचा चुकी है। इससे मरीज को रूट केनाल से लेकर इंप्लांट या दांत निकलवाने की भी जरूरत पड़ रही है। उसे न सिर्फ ज्यादा दर्द सहना पड़ रहा है बल्कि उसका खर्च भी बढ़ेगा। जानकारों का कहना है कि दांतों की बीमारियां दिखने सुनने में भले वे फौरन बड़ा स्वरूप ले लेती हैं।
ह्दय रोग मधुमेह का जोखिम
डॉक्टरों का कहना है मसूडों में संक्रमण से पूरे शरीर में सूजन के साथ-साथ ह्दय रोग और मधुमेह का जोखिम बढ़ता है। मधुमेह से संक्रमण की आशंका वैसे ही बढ़ जाती है। जानकारों के अनुसार शरीर में सूजन पैदा होना संक्रमण का अपने आप में बड़ा जोखिम है।
बीमारी टली तो सर्जरी की नौबत
दांतों के मरीजों को लंबे समय तक इलाज टालने के बाद ज्यादा गहन चिकित्सा ही करनी पड़ती है। यह अधिक दर्दनाक होती है। बच्चों का समय पर इलाज न हो तो बड़े होने पर सर्जरी की जरुरत पड़ती है।
हर 20वां वयस्क बीमारी से पीड़ित
20 से 64 साल का हर 20वां वयस्क दांतों की बीमारी से जूझ रहा होता है। दंत चिकित्सा न ले पाना गंभीर बीमारी वाले लोगों केट लिए ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है।
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